राजस्थान रै रैवासिया री मातभासा राजस्थांनी है। रैवासिया रो असली जीवण भासा रै औळै-दोळै रचीजै। लोक री हरेक मानतावां उण री भासा मांय थरपीजै। भावां रा हरफ मांडती थकी भासा उणां नै एक पिछांण दैवै। राजस्थान री रळियावणी संस्कृति भासा रै सीगै ई आखी जगती मांय जाणीजै। अठै रा लोकगीत, लोकनिरत अर लोकसंगीत रौ साजो-बाजो बिना भासा बण ई कोनी सकै। जे राजस्थान सूं राजस्थांनी अळगी कर दी जावै तो ओ साजो-बाजो खिंड जावै। पछै किस्यो राजस्थान!
राजस्थान रा रैवासी आपरी पिछांण नीं मिटै इण खातर आजादी रै 60-62 बरसां पछै ई भासा रो जुद्ध मांड राख्यो है। ओ जुद्ध संवैधानिक मानता रो है। भारत रै संविधांन री आठवीं अनुसूची मांय भासा रो दरजो दीरीजै। इण दरजै पछै वा भासा सगळै अधिकारां साथै राजकाज री भासा बण सकै। भणाई-पढाई री भासा बण सकै। नौकरी-रूजगार री भासा बण सकै।
राजस्थांनी नै संविधान री आठवीं अनुसूची मांय ठौड़ दिरावण सारू बरस 2003 में राजस्थान विधानसभा सरब संकळप प्रस्ताव पास कर’र भारत सरकार कनै भेज्यो। वो प्रस्ताव संसद मांय राखीज’र पास करयां पछै राजस्थांनी भासा संविधान री आठवीं अनुसूची भेळी हुवै। पण, हाल ताणी केंद्र सरकार चेती कोनी है। क्यूं कै केंद्र सरकार नै राजस्थांनी भासा मानता सारू राजनेतावां मांय कोयी सबळो हेलो देवणियो कोनी। एक इस्यो हेलो जकै पांण आपरी गत सूं चालती केंद्र सरकार छिणभर थमै अर पाछी मुड़’र देखै, राजस्थांनी नै बतळावै अर साथै आंगळी पकड़ा’र सांतरै गेलै फेरूं बहीर हुवै।
राजस्थानियां नै आस है कै कदै कोयी भलो राजनेता जागसी अर हेलो देसी- केंद्र सरकार नै, राजस्थांनी भासा मानता सारू।
इणी हलकारै री आस-उम्मीदां मांय अठै बंतळ होसी सोनळ-सुरंगै राजस्थान, राजस्थांनी भासा-साहित्य अर उणरै सगळै पखा री । म्हारै कांनी सूं, थारै कांनी सूं- आपंणै कांनी सूं।
जै भारत। जै राजस्थान। जै राजस्थांनी।
निज भाषा उन्नति अहै, सबै उन्नति रो मूल।
बिन निज भाषा उन्नति कै मिटै न हिये को शूल।।
-भारतेन्दु बाबू
राजस्थानी लोगां रै हिवङै बस्या भावां नै पड़तख करण रो माध्यम है ‘हेलो’।
बगत री जरूरत है कै इण हलकारै मांय आपां आपणो हलकारो मिला- बुलन्द आवाज बणावां अर बींनै बां कानां ताणी पूगा देवां जिका जाण-बूझ बहरा हुय रैया है।
By: उम्मेद गोठवाल on मई 16, 2010
at 8:14 पूर्वाह्न
आप’रै ‘हेलै’ मैं म्हे साथै हाँ…!
By: सुरेन्द्र सोनी on मई 17, 2010
at 10:01 अपराह्न
सा भोत ही सूणो अर सार्थक प्रयास ह थारो ओ ब्लाग. इणरो विस्तार करो अर हो सके तो निरंतरता सारू लाग्या रौ. टेम तो लागसी पर भाषा रो बड़ो सवाल सुळझा जासी इण खातर म्यारा इसा प्रयास भोत ही मायना राखै.
By: पृथ्वी on मई 30, 2010
at 11:54 अपराह्न
इण हेले ने हाके में तब्दील करने हरावळ नाई गूंज उठेला ऐड़ी आस बंधे है।
इण हेले मे हर वो राजस्थानी सामल है जिणने इ मरुधरा रो जायो होवण रो गुमान है
पढहु पढावहु लिखहु, मिलि छपावह कछु पत्र।
विविध कला शिक्षा अमित ज्ञान अनेक प्रकार,
सब देशन से लै करहहु भाषा मांहिं प्रचार।
…अंग्रेजी पढ़कै जदपि सब गुण होत प्रवीण,
पै निज भाषा ज्ञान बिन रहत हीन के हीन।
कहहु सबै भारत जय!भारत जय! भारत जय!
भारतेन्दु हरिश्चंद्र
By: Kiran Rajpurohit Nitila on जुलाई 18, 2010
at 2:51 अपराह्न
भाई दुलाराम, थारी लगन अर मेहनत जबरी है.. मायड़ री मानता सारू आपां सगळा भेळा हाँ…
कवि हिम्मत सिंह उज्जवळ रो दूहो है…
झक नीं पड़सी जीव नै
साखी है भगवान.
राजस्थानी मात नै
मिलै न जद लग मान..
By: डॉ. सत्यनारायण सोनी on सितम्बर 13, 2010
at 8:04 अपराह्न
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By: p m somani on अप्रैल 14, 2011
at 5:33 अपराह्न